निर्दोष साबित होने में लग गए 28 साल , न्याय व्यवस्था की दुर्दशा का शिकार हुआ युवक

गोपालगंज/ बिहार
गोपालगंज से न्याय व्यवस्था की एक ऐसी भयावह कहानी सामने आई ,जिसने आम आदमी को पूरी तरह डरा दिया है । हत्या और अपहरण के आरोप में 28 सालों से जेल में बंद उत्तर प्रदेश के देवरिया निवासी बीरबल को अब कोर्ट ने बेगुनाह माना । एक व्यक्ति को निर्दोष साबित करने में पूरे 28 साल लग गए । 28 वर्ष की उम्र में बीरबल को गिरफ्तार किया गया अब उसकी उम्र 56 साल हो गई।अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश विश्वविभूति गुप्ता की अदालत ने गुरुवार को उसे दोषमुक्त पाते हुए बाइज्जत बरी कर दिया. कोर्ट ने पुलिस की चूक पर भी टिप्पणी की है. कोर्ट का फैसला सुनते ही अधेड़ हो चुका आरोपित कोर्ट में फूट-फूटकर रो पड़ा. अपर लोक अभियोजक परवेज हसन ने बताया कि ट्रायल के दौरान पुलिस न तो कोर्ट के सामने अपना पक्ष रख सकी और न ही जांच अधिकारी ही कोर्ट में गवाही के लिए आए. पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर भी कोर्ट में पेश नहीं हुए. बचाव पक्ष के अधिवक्ता राघवेंद्र सिन्हा ने बताया कि इस केस की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रही थी. फास्ट ट्रैक कोर्ट के सालों से बंद रहने के कारण इसकी सुनवाई बाधित रही. अंत में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की कोर्ट में जब मामला पहुंचा तो कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेकर ट्रायल को पूरा कराने के लिए सुनवाई शुरू की थी.देवरिया के बनकटा थाने के टड़वां गांव निवासी बीरबल भगत को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उनकी उम्र महज 28 वर्ष थी. अब वह 57 वर्ष की उम्र में जेल से रिहा हुआ है. जेल में रहने के दौरान ही उसके मां-बाप की मौत हो गई, लेकिन वह कंधा तक नहीं दे सका. परिवार वालों ने भी बीरबल से रिश्ता-नाता तोड़ लिया है ।
क्या था मामला ?
11 जून 1993 को गोपालगंज जिले के भोरे थाना के हरिहरपुर गांव के रहने वाले सूर्यनारायण भगत देवरिया के रहने वाले युवक बीरबल भगत के साथ मुजफ्फरपुर के लिए घर से निकले थे. उसके बाद से अचानक वो लापता हो गए, परिजन द्वारा काफी तलाश करने के बाद 18 जून 1993 को सूर्यनारायण भगत के पुत्र सत्यनारायण भगत के बयान पर भोरे थाना (कांड संख्या-81/93) में मामला दर्ज कर बीरबल भगत को नामजद अभियुक्त बनाया गया।
बाद में देवरिया पुलिस ने एक अज्ञात शव को जब्त किया, जिसका यूडी केस दर्ज कर शव को दफना दिया गया था. कुछ दिनों बाद परिजनों ने देवरिया पुलिस से मिली तस्वीर के आधार पर पहचाना कि सूर्यनारायण भगत के शव को दफनाया गया था।
देवरिया पुलिस ने बीरबल भगत को 27 जनवरी 1994 को एक दूसरे आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया. आरोप पत्र आने के बाद 28 फरवरी 1995 को न्यायालय ने सूर्यनारायण भगत मामले में संज्ञान लिया. सत्र न्यायालय में इस आपराधिक मामले की सुनवाई शुरू हुई.
इसी बीच यूपी के देवरिया कोर्ट में लंबित सत्र के बाद में 27 अक्टूबर 2010 को आरोपी बीरबल को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. 11 वर्षों तक सजा काटने के बाद भोरे पुलिस ने रिमांड पर लेकर गोपालगंज जेल में बंद कर दिया था. उसे अपराधी मानकर परिजन व रिश्तेदारों ने भी जेल में छोड़ दिया. किसी ने जमानत तक कराने के लिए कोर्ट में अर्जी नहीं दी और न ही कोई जेल में मिलने आया.
इस मामले में करीब 11 साल तक चली सुनवाई के बाद आरोपी बीरबल भगत को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश विश्वविभूति गुप्ता के न्यायालय ने पर्याप्त सबूत के अभाव में रिहा कर दिया. अब बीरबल भगत कहाँ जाएंगे?
बड़ा सवाल यह है कि आखिर एक निर्दोष नागरिक की जिंदगी तबाह करने की जिम्मेदारी कौन लेगा? इस मामले ने न्याय तंत्र की मौजूदा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।