नेताओं के सियासी चक्रव्यूह में फँसी लोकतंत्र की जनता के वोट का हश्र

लोकतंत्र में जनता वोट के लिये लंबी कतारों में लग अपना प्रतिनिधि चुनती है और ये प्रतिनिधि मिलकर पार्टी , संख्या बल के रूप में देश को एक सरकार के रूप में परिणत करते है । आज देश की दुर्दशा का आलम देखिये , जनता का वोट ले सत्ता के लिए कुर्सी की लड़ाई लड़ती पार्टियां , बेमेल गठबंधन , आंकड़ो के खेल से सत्ता तक पहुंचने का जुगाड़ , क्या ऐसे हो पायगा हमारा विकास। हर जगह किसी भी पार्टी को स्प्ष्ट बहुमत न मिलने से गठबंधन सरकारों का अस्तित्व , कहीं न कही विकास के मुद्दे को प्रभावित करता ही है ।
अभी महाराष्ट्र में कुर्सी को लेकर खीचतान चल रही है, हरियाणा में दो दलों की सरकार बनी है , बिहार में दो दल साथ है और दोनों के बोच हाल ही में मतभेद भी सामने आया था । जब राज्य में किसी एक पार्टी की सरकार नहीं बनती है तो अक्सर देखा गया है कि कुछ समय तक तो ठीक चलता है लेकिन बाद में निजी फायदे के लिए दो दलों के बीच खींच तान की स्थिति उत्पन्न हो जाती है , सारा ध्यान कुर्सी बचाने पर ही लगा रहता है । विकास के मुद्दे गायब हो जाते है , मतदाता ठगे जाते हैं ।
विनीता:-