वैज्ञानिकों ने ऐसी एंटीबॉडी खोजी ,जो कोविड-19 को शरीर में फैलने से रोक देगी

2003 के सार्स कोरोना वायरस को इस एंटीबॉडी ने निष्क्रिय कर दिया। अब वैज्ञानिकों का दावा है कि कोविड-19 भी सार्स कोरोना वायरस के परिवार का वायरस है। इसलिए यह एंटीबॉडी उसे भी कमजोर कर खत्म करने में सफल होगी। वैज्ञानिकों की इस टीम को लीड कर रहे हैं यूट्रेच यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बेरेंड-जेन बॉश।प्रोफेसर बॉश के मुताबिक इस एंटीबॉडी में ऐसी क्षमता है कि यह कोरोना वायरस कोविड-19 को खत्म कर सकती है, क्योंकि यह वायरस के उस लेयर पर हमला करती है जिसका उपयोग वायरस कोशिकाओं पर चिपकने के लिए करता है।

प्रो. बॉश ने बताया कि ऐसे एंटीबॉडी की वजह से अगर इंसानी शरीर में कोरोना वायरस फैलने से रुकता नहीं भी है। तो भी अच्छी बात ये है कि इस एंटीबॉडी से कोरोना वायरस को इंसानी शरीर में फैलने में काफी ज्यादा समय लग जाएगा। यानी कोविड-19 वायरस शरीर में ही कमजोर हो जाएगा। वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में चूहे के अंदर कोरोना वायरस से संक्रमित कराया। वैज्ञानिकों ने देखा कि वायरस ने जैसे ही चूहे के शरीर में प्रवेश किया। चूहे के शरीर के अंदर 51 तरह के एंटीबॉडी निकलनी शुरू हो गई। इसी में मौजूद थी 47D11 एंटीबॉडी। जो कोरोना वायरस की बाहरी परत को नष्ट कर दे रही थी। बस यहीं पर वैज्ञानिकों ने इस एंटीबॉडी की पहचान कर ली। आपको बता दें कि कोरोना वायरस का आकार गोल होता है। उसके चारों तरफ ऐस-2 नाम के प्रोटीन की कंटीला लेयर होती है। ये कंटीली लेयर ही इंसानी शरीर की कोशिकाओं से चिपक जात है। इसके बाद इंसानी शरीर की कोशिकाओं की बाहरी लेयर को गलाकर उसके अंदर अपना जींस छोड़ देती है। कोशिकाओं में जींस छोड़ने के बाद वायरस कोशिकाओं को खाकर अपनी संख्या बढ़ाना शुरू करता है। इसीलिए वैज्ञानिकों ने ऐसी एंटीबॉडी खोजी है जो कोरोना वायरस की बाहरी कंटीले लेयर से चिपक कर उसे नष्ट कर देगी। यानी कोरोना वायरस के वो दांत टूट जाएंगे जिससे वो हमला करता है।

रीडिंग यूनिवर्सिटी के सेल्यूलर माइक्रोबॉयोलॉजी की प्रोफेसर डॉ. सिमोन क्लार्क ने कहा कि जब कोरोना वायरस को इंसानी शरीर में फैलने से रोक दिया जाएगा तो उसके आगे के सारे काम रुक जाएंगे। यानी वह इंसान के शरीर में कुछ नहीं कर पाएगा। एंटीबॉडी वायरस के ऊपर हमलाकर के उनसे चिपक जाती हैं। इससे वायरस या तो मारा जाता है या फिर शरीर की कोशिकाओं पर उतनी ताकत से हमला नहीं कर पाता, जितनी ताकत से उसे करना चाहिए। हालांकि अभी इस एंटीबॉडी का क्लीनिकल ट्रायल होना बाकी है। उसके बाद ही कुछ कहना ठीक होगा. लेकिन अभी तक के परीक्षण तो सफल और नतीजे सकारात्मक रहे हैं।
साभार :-मेडिकेयर न्यूज़